कश्मीर के सोप्पान कस्बे में आज भी जय सिंह चोकी है l
जयसिंह भाटी
बलिदान 27 मार्च 1996 , चैत्र सुद अष्टमी (दुर्गा अष्टमी) विक्रम संवत 2052
यह नाम उन महान बलिदानीयो में शुमार है जिन्होंने वतन के खातिर अपने प्राणों का उत्सर्जन किया। जयसिंह का जन्म चंदनसिंह भाटी के घर हुआ उनाका पेतर्क गाँव देवड़ा (जैसलमेर) था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गूंगा मे हुई तथा उसके पश्चात उनकी नियुक्ति सरकारी अध्यापक के तॊर पर हुई।
लेकिन उनकी की राष्ट्र प्रेम की प्यास शांत नही हुई और शिक्षक की नोकरी छोड़ सेना मे चले गये। जहाँ कश्मीर से कन्या कुमारी तक उसने हर खतरनाक पोस्ट पर अपनी सेवाए दी। सेना के उच्च कमान के अफसरों का विश्वास उस वक्त दाता पर बढ़ गया जब वो अकेले पाकिस्तानी सीमा मे जाकर 3 भारतीय जवानों की लाशे भारत लाये इस तरह निरंतर पदोउन्तियो से वो डिप्टी कमांडेट बन गये। इतनी राष्ट्र प्रेम की भावना के कारण वो पाकिस्तान की नापाक नजरो में चढ़ गये थे।
27 मार्च 1996 को आंतकवादियों ने सेना के ही जासूस को प्रलोभन देकर उनको गलत सूचना दिलवाई की 3 आंतकवादी कश्मीर के सोपान कस्बे के किसी घर मे हिन्दू परिवार को बन्दी बना बेठे है।। सुचना पाते ही जयसिंह दुर्गा अष्टमी की पूजा बिच मे छोड़
3 सेनिको के साथ उस मकान में घुस गये। लेकिन सुचना गलत थी , वहाँ उग्रवादी 3 नही बल्कि 10 थे। 6 को मोंत के घाट उतरने के बाद वो वीर गति को प्राप्त हुए।। दाता के इस अमर बलिदान के फलस्वरूप उनको राष्ट्रपति महामहिम द्वारा मरणोपरांत पुलिस पदक का सम्मान मिला।
कश्मीर के सोप्पान कस्बे में आज भी जय सिंह चोकी है जहां आज भी सेनिको की जोरदार आस्था है और 27 मार्च को वीरता दिवस मनाया जता है। उनके नाम से जैसलमेर मे जयसिंह चोक (युनियन चौराहा) है।
फतेहघड़ मे जयसिंह छात्रावास प्रस्तावित है।
शत शत नमन शेर को जय जवान जय हिन्द !